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जीवन

Sunday 10 June, 2012


युँ तो बहुत कुछ है पास मेरे फिर भी कुछ कमी सी है

घिंरा हूँ चारो तरफ़ मुस्कुराते चेहरो से

फिर भी जिन्दगी में उजाले भरने वाली उस मुस्कुराहट की कमी सी है

दिख रही है पहचान अपनी ओर उठते हर नज़र में

फिर भी दिल को छु लेने वालि उस निगाह की कमी सी है

गुँज़ता है हर दिन नये किस्सो, कोलाहल और ठहाको से

फिर भी कानो में गुनगुनाति उस खामोशी कि कमी सी है

बढ़ रहे है कदम मेरे पाने को नयी मन्ज़िलें

फिर भी इन हाथो से छुट चुके उन नरम हाथो की कमी सी है |

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